(1) धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर“ , अयोध्या (फेजाबाद) सरयू के निकट, डेराबीबी, बड़ा मोहल्ला, नगर अयोध्या (फेजाबाद) के उर मध्य में स्थित है। राजा विक्रमादित्य ने भक्ति भावना से इसका निर्माण कराया। किंवदन्ती के अनुसार भगवान श्री विष्णु द्वारा स्थापित मंन्दिरों में से यह भी एक है। इसका वर्णन अयोध्या महात्मय शास्त्रों में भी उपलब्ध है। इस मंदिर दक्षिण भाग में भगवान हरि, मध्य में यमराज तथा वाम भाग में श्री चित्रगुप्त जी विरामान है। कहते है कि श्री राम सीता विवाह उपरान्त नव दम्पति ने सबसे पहले इसी मन्दिर में आकर चित्रगुप्त जी की पूजा की थी। महमूद गजनवी के समय सन् 17 ई. में यम द्वितीया को इस मंदिर के श्री चित्रगुप्तवंशीय बाबा नरसिंह जी ने क्रय किया। अयोध्या महात्मय बताता है कि सरयू स्नान के पश्चात इनका दर्शन करना अत्ययावश्यक है। अन्यथा-तीर्थ व सरयू-स्नान असफल ही है।
(2) चित्रागुप्त मंदिर, वाराणसी (काशी):बनारस के दारानगर मुहल्ले में स्थित है। बनारस के राज के दीवान बलदेव वख्श ने अनेकानेक प्रासाद निर्मित कराये, उनमें से एक प्राचीन प्रासाद में चित्रगुप्तजी का आलीशान मंदिर बनवाया।
(3) चित्रगुप्त मंदिर, गोरखपुर:1965 ई. में श्री बृजमोहन सहाय ने अपने पिता श्री विष्णुमोहन सहाय के संकल्प पर इसका निर्माण कराया। यह राजकीय जुबली इण्टर कॉलेज के सामने है। गोरखपुर की चित्रगुप्त सभा ने यह नवीनतम मंदिर बनवाया है, जो नूतन कौशल युक्त है तथा इसकी मूर्ति कला आदि भव्य है। यह बहुत बड़ा मंदिर है, धर्मषाला भी है तथा विवाह स्थल भी इसी प्रांगण में है। इसे श्रीवास्तव मंदिर भी कहते है।
(4) चित्रांगेश्वर महादेव मंदिर, फिरोजाबाद:यह मंदिर सेक्टर-1 सुहागनगर, फिरोजाबाद में स्थित है। समस्त देवों के साथ ही भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज की खड़ी हुई प्रतिभा की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा सन् 1996-97 में श्री चित्रगुप्त परिषद, फिरोजाबाद के सौजन्य से श्री जे.पी. कुलश्रेष्ठ, एडवोकेट (अध्यक्ष), श्री विश्वमोहन कुलश्रेष्ठ (महासचिव) श्री लालजी बाबु श्रीवास्तव (कोषाध्यक्ष), श्री रमन प्रकाश सक्सेना। श्री नरेन्उद्र कुमार सक्सेना एवम् मेजर डा. के. सी. श्रीवास्तव के सहयोग से स्थापित की गई। इस मंदिर में प्रतिदिन प्रातःकाल तथा सायं समस्त समुदायों के द्वारा भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती एवं स्तुति नित्य प्रति नियमित रुप से की जाती है। मंदिर की व्यवस्था श्री रमन प्रकाश सक्सेना के द्वारा की जाती है।
(5) श्री धामगोदा बिहारी, वृन्दावन:विख्यात मंदिर श्री धामगौदा बिहारी में जहां देवी, देवताओं, ऋिषियों मुनियों एवं महापुरुषों की लगभग 300 प्रतिमायें शोभायान हैं, वहीं भगवान श्री चित्रगुप्त जी की अति ललित ललाम भव्य दिव्य प्रतिमा 20 मार्च, 1983 को चित्रांश जगदीश अस्ािाना द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी है।
(6) चित्रगुप्त मंदिर, नवाबगंज, कानपुर:यह 2/296, नवाबगंज, कानपुर में स्थित है। सन् 1983 में मंदिर के निर्माण में श्री मदनमोहनलाल श्रीवास्तव, वकील का उल्लेखनीय योगदान रहा है।
(7) चित्रगुप्त मंदिर, पटकापुर, कानपुर:24/90 पटकापुर, कानपुर में स्थित है। इस मंदिर में श्री चित्रगुप्त जी की मूर्ति की ्रतिष्ठा सन् 1923 में चित्रांश श्री रामप्रसाद सिन्हा के बहुमूल्य योगदान से सम्भव हुई।
(8) चित्रगुप्त मंदिर, गोविन्द नगर, कानपुर: 124/158 गोविन्द नगर कानपुर में स्थित है। इस मंदिर में श्री चित्रगुप्त जी की प्रतिमा की स्थापना सन् 1971 में चित्रांश डॉ. नन्दलाल सिन्हा के अपूर्व योगदान से सम्भव हुई।
(9) चित्रगुप्त मंदिर, बंदायूं: इस मंदिर में नवाब नौबतराय ने अष्ट धातु की चित्रगुप्त जी की खड़ी प्रतिमा स्थापित की। एक बार यह मूर्ति पांच उचक्के चोर चुरा कर ले गये। मूर्ति ने ऐसा चमत्कार दिखाया कि एक-एक चोर परस्पर लड़ते हुए मरते गए और अन्त में वह मूर्ति मिल गई और पुनः स्थापित की गयी। इसे केवल कायस्थ ही नहीं अपितु अन्य जाति बन्धु भी मानतें हैं। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की यह चतुर्भजा मूर्ति है। तथा लगभग 300 वर्श पुरानी है।
(10) चित्रगुप्त मंदिर, कटरा, बांदा: मंदिर श्री चित्रगुप्त जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा एवं स्थापना 28 मई 1972 को हुई।
(11) महेश्वरी देवी मंदिर, बांदा: एक अन्य अति प्राचीन मंदिर भी बांया में है, जिसकों श्री चित्रगुंप्त मूंदिर, महेश्वरी देवी के रुप में जाना जाता है।
(12) चित्रगुप्त मंदिर, इलाहबाद: अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, शताब्दी समारोह पर 13-14 दिसम्बर, 1986 श्री चित्रगुप्त भगवान की चार हाथ खड़ी भव्य मूर्ति स्थापित हुई।
(13) चित्रगुप्त मंदिर, बड़ा कुँआ किला, रायबरेली: निर्माण चित्रांश ठाकुर प्रसाद निगम द्वारा सन् 1957 के गदर के पूर्व कराया गया था। सन् 1904 से मंदिर में कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया से पूजन समारोह की परम्परा का शुभारम्भ हुआ।
(14) चित्रगुप्त मंदिर, ग्राम परैवा, नमकसार, रायबरेली: मंदिर जायस रेल्वे स्टेशन से 10 कि.मी. पूरब-दक्षिण की और – परैय, नमकसार, रायबरेली में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1976 में चित्रांशी श्रीमती धनपति देवी धर्मपत्नि हरगोविन्ददयाल श्रीवास्त्व ने कराया। मंदिर में श्री चित्रगुप्त भगवान की दर्शनीय, प्रतिमा, आकर्षक मुख व सुन्दर नेत्र है।
(15) चित्रगुप्त मंदिर, ग्राम अकोड़िया, सलौन रायबरेली: इस मंदिर के निर्माण का समय तो ज्ञात नहीं हैं। इतनी ही जानकारी है कि इस मंदिर में दोनों यम-द्वितीया कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तथा चेत्र पक्ष की दौज पर दो बार पूजा-अर्चना समारोह होता है।
(16) चित्रगुप्त मंदिर, रायनपुर, चरखारी, हमीरपुर: चरखारी नरेश श्री जुआर सिंह देव के परामर्श एवं सहयोग से कायस्थ समुदाय द्वारा आर्थिक साधन जुटा कर विक्रम सम्वत 1960 को इस मंदिर का निर्माण कराया गया। भव्य कौशल का मंदिर है।
(17) चित्रगुप्त मंदिर, गोगुलपुरा, आगरा: मन्दिर की स्थापना हेतु चार महानुभावों – श्री शिव प्रसाद सक्सेना, श्री मुन्नूलाल आस्थाना, श्री चिमनलाल अस्थाना एवं श्री लक्ष्मण प्रसाद अस्थाना द्वारा भूमि दान में दी गई। तत्पश्चात् सन् 1877 में स्थापना हुई। श्री चित्रगुप्त की मूर्ति की स्थापना डा. पन्नालाल, सी.एस.आई., आइ सी.एस. द्वारा करायी गयी। मंदिर का कौशल असामान्य व नवीन है।
(18) चित्रगुप्त मंदिर, ताजगंज, आगरा: हाल में इस मंदिर का जीर्णोद्वार किया गया है तथा यहाँ श्री चित्रगुप्त जी की मूर्ति की पुर्नस्थापना की गई है।
(19) चित्रगुप्त मंदिर, भोगीपुरा, शाहगंज, आगरा: इस मंदिर का निर्माण श्रीमती गनेश कँुवरि ने अपने पति बाबू जगजीत सिंह जी, कुलश्रेष्ठ, जमींदार की इच्छानुसार कराया था। इस मंदिर के साथ श्री चित्रगुप्त धर्मशाला भी स्थित है, जो सुजातीय बन्धुओं एवं समाज के अन्य कार्यो के लिए हैं।
(20) श्री चित्रगुप्त मंदिर व लंका मीनार, कालपी (उ. प्र.): उत्तरप्रदेश के कालपी नगर में मुहल्ला मनीगंज में सीप, कौड़ी और शंख के चूने से बनी हुई 215 फीट ऊँची लंका मीनार अवस्थित है। रामचरित मानस के लंका काण्ड का चित्रण चूने की मूर्तियों द्वारा दर्शाये जाने के कारण इस मीनार का नाम लंबा मीनार पड़ा। इस लंका मीनार का निर्माण जनपद जालौन के सुप्रसिद्ध रईस बाबू मथुरा प्रसाद निगम वकील ने सम्वत 1937 (सन् 1875) में एक लाख रुपये से अधिक व्यय करके बनवाया था। इस मीनार में सात सौपान हैं, जिन्हें सात लोकों को मान कर ऊपर ब्रह्म जी की मूर्ति इस दृष्टिकोण से बनवाई गई है, क्योंकि हिन्दू धर्म के आधार पर आत्म सात लोकों को पर कर ब्रह्मलोक पहुँचती है और तभी मोक्ष प्राप्त होता है। सम्भवतः लंका मीनार के निर्माता का यही दृष्टिकोण रहा होगा। लंका मीनार में ऊपर जाने के लिए 173 घुमावदार सीढ़ियाँ बनी हुई है। ऊपर जाने वालों को सात चक्कर सीढ़ियों के लगाने पड़ते है। इसलिए भाई बहन इस पर साथ-साथ नहीं चढ़ते है। लंका मीनार में रावण की मूर्ति के चारो और लंका काण्ड के अन्य दृष्य भी मूर्तियों में दर्शाये गये हैं। लंका मीनार से लगभग 15 किलोमीटर की प्रकृति की अनुपम छटा व दृश्य दिखलाई पड़ता है।
लंका मीनार के प्रवेश द्वार पर दक्षिण की और 140 फीट लम्बा, 1 फीट मोटा तथा 7 फीट ऊँचा अपना फन उठाए नाग है तथा उत्तर की और इसके ठीक सामने 66 फीट लम्बी नागिन बनाई गई है जो नाग के समक्ष 35 फीट फन उठाए हुए है। कहते हैं लंका मीनार के निर्माता निगम वकील का जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) को हुआ था और उनके उत्पन्न होने पर नाग नागिन के जोड़े ने उनकी रक्षा की थी, इसलिए इन्हें बनवाया गया है। इस कारण लम्बा मीनार को परिसर आज भी एक भारी मेला और दंगल होता है।
लंका मीनार के सामने 59 फीट लम्बे तथा 53 फीट चौड़े परिसर में 16 फीट वर्गाकार मंे श्री चित्रगुप्त का एक विशाल मंदिर है। यह मंदिर अपनी स्थापना कला के लिये विख्यात हैं इस मंदिर के मध्य भगवान शंकर की मूर्ति है। मंदिर के उत्तर व दक्षिण पूर्व भाग को विशाल नाग घेरे है। मंदिर ऊपरी भाग दक्षिण भारत के मंदिरों से मिलता जुलता है तथा इसमें कई मूर्तियाँ बनी है। मूर्तिया चूने की बनी है व उनकी पेंटिग आज भी नयी मालूम देती है। मंदिर के चारों और भगवान के अवतारों की मूर्तियां है। अन्दर सूर्य, चन्द्र, गणेश, हनुमान राहु, केतु आदि की मूर्तिया स्थापित है।
लंका मीनार के दक्षिण की और रावण की 100 फीट लम्बी मूर्ति बनी हुई है। रावण के पेरों को पकड़े हुए नील, ल दोनों बन्द बने हुए है। रावण भगवान शंकर का भक्त था, अतः सामने श्री चित्रगुप्त मंदिर में भगवान शंकर की मूर्ति इस प्रकार बनाई गई है जिससे वह सदैव अपने अराध्य भगवान शंकर के दर्शन करता रहे।
लंका मीनार के मुख्य द्वार पर इससे मिला हुआ 95 फीट लम्बा और 24 फीट चौड़ा एक पर्दा है। जिसके उत्तर की और लंका मीनार से मिली हुई मेघनाद की चूने की मूर्ति बनी हुई है और इसी से मिली हुई। कुम्भकरण की विषाल चूने की मूर्ति बनी हुई है। मेघनाद बैठा हुआ है जबकि कुम्भकरण लेटा हुआ है। इसी से लगी हुई जनक वाटिका है जिसके मध्य भाग में धनुश रखा हुआ और उसके चारों और राजाओं के बैठने के स्थान बनाए गये हैं।
लंका मीनार के समीप नीचे आयोध्यापुरी और मथुरापुरी बनाई गई है। नीचे बनी इमारत से पूर्व की और अयोध्या काण्ड के प्रारम्भ से लेकर श्री रामेश्वरम स्थापना तक की मूर्तियां हैं तथा पश्चिम की और श्री कृष्ण की लीलाओं को मूर्तियों में दिखलाया गया है। और उसके पीछे मकदूमशाह का मकबरा भी बना है। इस प्रकार लंका मीनार के परिसर में हिंन्दू-मुस्लिम दोनों संस्कृतियों का समावेश है।
बाबू मथूरा प्रसाद निगम वकील रावण का अभिवनय करते थे और मुस्लिम महिला घसीटीबाई मन्दोदरी का अभिनय करती थी। उसी की स्मृति में वकील साहब ने लंका मीनार के सामने एक मस्जिद तथा एक कुआँ भी बनवाया था जो आज भी हैं।
यहीं पर पलका भी बनवाया गया है जिसमें अशोक वाटिका का दृश्य दिखलाया गया है, उसमें हनुमान जी और सीता की मूर्तिया बनी हुई है। इसे रावण हृदय भी कहा गया है।
(21) चित्रगुप्त मंदिर, समथर, झांसी: सन् 1895 में परिस्थितिवश मुर्तियों की प्रतिष्ठा एक दुकान में की गई, परन्तु सन 1942 में वर्तमान मंदिर में लाई गई । दर्शनीय छवि है। पूर्ण मनोरथ सिद्ध होते हैं। बनते सदैव बिगड़े काम।
(22) चित्रगुप्त मंदिर, झांसी: श्री चित्रगुप्त जी का एक पुरातन मंदिर झांसी के वर्तमान रेलवे जंक्शन की जगह पर था। झांसी के राज्य के पतन के उपरान्त तत्कालीन सरकार ने झांसी रेलवे के निर्माण हेतु इस स्थान पर अधिकार मंदिर के लिए मुआवजे के रुप में वर्तमान पानीवाली धर्मशाला, गणेश बाजार के निकट कुछ भूमि दी। बाद में उस मंदिर प्रांगण में एक हाल पूजा-अर्चना तथा सांस्कृतिक सामाजिक कार्यों के लिए बनवाया गया।
उपर्युक्त मंदिरों के अतिरिक्त उत्तरप्रदेश में श्री चित्रगुप्त जी के मंदिर निम्नांकित स्थानों पर विद्यमान हैं-
(23) ब्राह्मणपुरा, अलीगढ़(24) ईटावा(25) इकदिल, इटावा(26) बाँसमंडी इलाहाबाद(27) उन्नाव(28) काल्पी जालौन(29) कायमगंज, फरूखाबाद(30) गढ़मुक्त्ेश्वर, मेरठ(31) गाजीपुर(32) गोण्डा(33) कचत्रकुट, बांदा(34) चुनाट(35) घिबरामऊ(36) फर्रखाबाद(37) जालौन(38) उर्दू बाजार, जौनपुर(39) नजीवाबाद, विजनौर(40) नई दिल्ली बस्ती-खोरी लखीमपुर(41) नैमीश्रण्य, सीतापुर(44) फतेहगढ़, फर्रखाबाद(43) मनिहारी, फरूखाबाद(44) फतेहपुर(45) बोलिया(46) बरेली(47) बाराबंकी(48) बिजनोर(49) बिस्वां, सीतापुर(50) भरतपुर गैट मथुरा(51) महाबन, मथुरा(52) महरौली, ललितपुर(53) ललितपुर(54) चौपन, मिर्जापुर(55) मिसरिख, सितापुर(56) मेरठ(57) राबर्टगंज, मिर्जापुर(58) नजीबाबाद(59) राजापुर, बांदा(60) ख्वाबगंज, लखनऊ(61) पाण्डेयगंज, लखनऊ(62) हुसैनगंज, लखनऊ(63) पानदरिबा चार बाडग, लखनऊ(64) लोघेश्वर(65) वोरावंकी(66) चेतगंज, वाराणसी(67) राशनगंज, शाहजहांपुर(68) सीतापुर(69) ऋशिकेश, देहरादून(70) कासगंज मैनपुरी(71) गढ़गंगा(72) बहराइच(73) गनेश बाजार, झांसी(74) राजापुर (बाँदा)(75) श्री धर्मराज चित्रगुप्त मंदिर, दारानगर, वाराणसी(76) चंतगंज, वाराणसी।