चित्रगुप्तजी अवकाश पर

जन्म-मृत्यु, पाप-पुण्य का लेखाजोखा के विभागाध्यक्ष ने लम्बे अवकाश पर जाने के लिए आवेदन पत्र ब्रहमाजी को प्रेषित किया। ब्रहमाजी ने उस पर टीप दी तत्काल चर्चा करें। उपस्थित होने पर ब्रहमाजी ने पूछा – यह क्या है ? आप लम्बी छुटटी पर क्यों जाना चाहते हैं ? चित्रगुप्तजी – महाराज मेरे 12 पुत्र हैं और कुल मिलाकर काफी बड़ा परिवार है। मैं आज तक छुटटी जाकर उनसे नहीं मिला इसलिए अपने परिवार से कटता जा रहा हू। कर्इ लोग तो मुझे भूल ही गये हैं। परिवार वालों की आजकल बुरी हालत है। उनका पुश्तैनी अधिकार उनसे छिन गया है। अब कलम उनके लिए रोजी रोटी का साधन नहीं केवल साल में एक बार पूजा करने की चीज रह गर्इ है। नवयुवक बेरोजगार और मारे-मारे फिर रहे हैं। शादी विवाह में अनेक कुरुतियाँ व्याप्त हो गर्इ हैं। इसलिए कुछ समय मैं उनके बीच बिताना चाहता हूँ ।
 
ब्रहमा : सो तो ठीक है लेकिन आपकी अनुपस्थिति में आपके विभाग का क्या होगा ?
चित्रगुप्त : आप ही ने मेरा एक असिस्टेंट नियुक्त किया था वह देख लेगा।
ब्रहमा : अरे वह क्या सम्भालेगा, वह तो बहुत डल किस्म का दिखता है।
चित्रगुप्त :- महाराज उसकी नियुकित के समय मैंने आपसे कहा था कि मेरे किसी परिवार वाले की नियुकित कीजिए जिनका यह पुश्तैनी काम है, लेकिन आपने मेरी नहीं मानी।
ब्रहमा : चित्रगुप्त जी यह सतयुग, त्रेता, द्वापर नहीं कलयुग है। इसमें राजा पेट से नहीं वोट से पैदा होता है। इसमें कोटा, सिफारिश, राजनैतिक दबाव, भार्इ-भतीजाबाद चलता है। बात-बात में जिन्दाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगते हैं। खैर आप जाइये लेकिन एक शर्त पर यदि इमरजेंसी आ गर्इ तो आपकी छुटटी कैंसिल कर आपको तत्काल आना पड़ेगा।
चित्रगुप्त : ठीक है महाराज।
 
चित्रगुप्तजी एक बंगले के सामने से जा रहे थे। बंगले पर किसी मन्त्री का नेम-प्लेट लगा था। उन्होंने देखा पैन्ट शर्ट पहने एक लड़का लान की घास छील रहा है।चित्रगुप्तजी ने पूछा भर्इ तुम पढ़े लिखे किसी अच्छे घर के लड़के मालूम पड़ते हो फिर घास क्यों छील रहे हो ?
लड़का – जी मैं डिप्लोमा होल्डर हूँ। कहीं नौकरी नहीं मिली। मैं किसी आरक्षण श्रेणी में नहीं आता। मेरा कोर्इ रिश्तेदार विधायक, सांसद या नेता नहीं है। भेंट के लिए पत्र पुष्प भी नहीं हैं। न तो स्वतंत्रता सेनानी का लड़का हूँ और न विकलांग हूँ। बड़ी मुशिकल से यहाँ डेली वेजेज पर काम मिला है।
चित्रगुप्त जी – यह कान में कलम क्यों खोस ली है ?
लड़का – जी, मैं जाति का कायस्थ हूँ। अब मेरे काम नहीं आती। इसकी केवल पूजा करता हूँ।
चित्रगुप्त – किसी कायस्थ ऑफिसर ने तुम्हारी सहायता नहीं की ?
लड़का – कर्इ कायस्थ आफीसरों से मिला। यह सुनते ही कायस्थ हूँ , ऐसे भड़क जाते हैं जैसे लाल कपड़े को देखकर सांड घबराते हैं कि कहीं उन पर जातिवाद का ठप्पा न लग जावे।
 
चित्रगुप्त जी आगे बढ़े। एक शामियाना लगा था। पता चला किसी कायस्थ के यहा शादी है। उनका जाति प्रेम उमड़ पड़ा। अन्दर चले गए। खुशी के बदले बड़ा गमगीन माहौल दिखा। कानाफूसी चल रही थी। पता चला वर सेल्स टैक्स इन्सपैक्टर है। बारात लग चुकी है। लड़के के बाप ने कम्प्यूटर और वी.सी.डी. प्लेयर की नर्इ मांग पेश कर दी है। लड़की का पिता पहले ही दो लाख नगद और एक लाख फर्नीचर आदि के दे चुका है। अभी उसकी तुरन्त इतनी रकम देने की हैसियत नहीं है। वर अपने पिता के पास प्लासिटक के गुडडे के समान सजा सजाया बैठा था।
 
चित्रगुप्तजी लड़के के पिता के पास गये और हाथ जोड़कर बोले – देखिये आपकी इस मांग से लड़की की क्या मानसिक स्थिति हो रही होगी। यदि आप बारात वापिस ले जायेंगे तो लड़की के पिता की क्या इज्जत रह जायेगी। पिता – और मेरी क्या इज्जत रहेगी जब लोग पूछेंगे दहेज में क्या मिला ? लड़का सेल्स टैक्स विभाग में है।
 
चित्रगुप्तजी – लालाजी, आपके लड़के की डिलीवरी जयपुर के सहाय नर्सिंग होम में हुर्इ थी। जन्म रजिस्टर पर आपके हस्ताक्षर हैं और सर्विस में जन्म तिथि क्या लिखी है। जब सरकार को सही तारीख बतलार्इ जावेगी तो आपकी और आपके लड़के की सर्विस का क्या होगा ?
 
समधी जी के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी। बोले – अरे मैं तो मजाक कर रहा था। भला शादी विवाह में मजाक न होगा तो कब होगा। आप बैठिए। फेरे आपके सामने पड़ेंगे।
 
चित्रगुप्त जी आगे बढ़े, एक सक्सेना नेमप्लेट देखकर उधर मुड़े। एक नवयुवक स्कूटर स्टार्ट करके शायद आफिस जाने ही वाला था। उससे उन्होंने पूछा – इस शहर में चित्रगुप्तजी का मंदिर कहा है ?
नवयुवक – जी किसका मंदिर, मै कुछ समझा नहीं।
 
चित्रगुप्त – कायस्थों के आराध्य देव चित्रगुप्त जी मंदिर पूछ रहा हू भार्इ।
नवयुवक – इस संबंध में मुझे कुछ आइडिया नहीं है। लान में पिताजी बैठे हैं शायद उनको जानकारी होगी। वे अन्दर गये और बतलाया कि मैं कायस्थ हू। बाहर से आया हू। जानना चाहता था कि यहा चित्रगुप्त जी का मंदिर कहा है। उन्हे बैठाते हुये लालाजी ने कहा – मत पूछिए। शासन ने सब समाजवालों के साथ कायस्थ समाज को भी प्लाट दिया था। चन्दा हुआ, कमेटी का चुनाव हुआ और दो चार फुट दीवारें भी उठीं लेकिन इस बुद्विजीवि कौम की विशेषता ने अपनी विशेषता सामने रख दी। आस-पास में सबके मंदिर बन गये लेकिन अब चित्रगुप्त मनिदर की र्इंटें भी गायब हो गयीं है।
 
वहां से चाय पीकर चित्रगुप्त जी आगे बढ़े ही थे कि उनके कार्यालय का चपरासी दौड़ता हुआ आया और बोला- महाराज आपको तुरन्त बुलाया है। उधर सब गड़बड़ घोटाला हो गया है।
चित्रगुप्त – क्या हुआ ?
चपरासी – महाराज, आप ही चलकर देख लीजिए (चित्रगुप्त जी अपने कार्यालय पहुचे और ब्रहमाजी के सामने खड़े हो गये)
ब्रहमा – देखा महाराज, मैेने कहा था कि मत जाइये। सब उल्टा-पुल्टा हो गया।
चित्रगुप्त – क्या हुआ ?
ब्रहमा – आप ही देखिये।
 
चित्रगुप्तजी ने जाकर देखा। सब फाइलें गायब हो गर्इं थीं। जिनको ऊपर के लोक में आना था वे नीचे मौज कर रहे हैं और जिनको जीवित रहना था वे एकाएक कुर्सी पर ही लुड़क गये और ऊपर आ गये। इतने में बाहर कुछ शोर सुनार्इ पड़ा । चित्रगुप्त जी ने पूछा क्या बात है ? चपरासी एक आदमी को लाया और बोला – महाराज न यह स्वर्ग में जाना चाहता है और न नरक में।
चित्रगुप्त – क्यों भार्इ कहीं तो जाना ही पड़ेगा।
आदमी – सांर्इ मुझे स्वर्ग और नरक के बीच में थोड़ी जगह दे दो मैं वहीं दुकान खोल दूगा। स्वर्ग और नरक दोनों का ग्राहक आवेगा।
 
एक चपरासी बोला – महाराज बड़ा गडबड़ हो गया। एक ही नाम के दो मिनिस्टर थे एक केन्द्र में और एक प्रदेश में। केन्द्र वाले को आना था और आ गया प्रदेश वाला।
चित्रगुप्त – ऐसा करो केन्द्र वाले को थोड़ा एक्सटेंशन दे दो और प्रदेश वाले का शरीर अभी राजकीय सम्मान के लिए रखा होगा। उसके कान में जाकर बोल दो कि आपको उदघाटन करने जाना है। वह तुरन्त उठकर खड़ा हो जावेगा।
 
थोड़ी देर बाद ब्रहमा जी ने फिर बुलवाया। चित्रगुप्त जी हाजिर हुये।
ब्रहमा – आपके गैर हाजिरी में जन्म विभाग और मृत्यु विभाग वालों के दो यूनियन बन गये हैं। उनकी माग है कि हमसे दिन रात काम लिया जाता है। न कोर्इ जन्म का समय निर्धारित है और न मृत्यु का। दोनों का समय निर्धारित होना चाहिये। हम लोग केवल 9 बजे से 5 बजे तक काम करेंगे। इसी बीच में लोगों को जन्म लेना या मरना पड़ेगा। इतवार को हमारी छुटटी रहेगी। उस दिन न कोर्इ मरेगा और न ही पैदा होगा। इमरजेन्सी वालों की डयूटी अलग होगी। अब बोलिये क्या करना है ? वे हड़ताल पर जाने वाले हैं। यदि वे हड़ताल पर चले गये तो लोगों का पैदा होना व जीना, मरना बन्द हो जायेगा। नेता लोग आ गये हैं।
चित्रगुप्त – कोर्इ बात नहीं आप उनके नेताओं को बुलवाइये।
 
चित्रगुप्त – आपकी मांगे बिल्कुल जायज हैं। मेरा ख्याल है आप लोग बहुत दिनों से काम कर रहे हैं। अब आपको रिटायर हो जाना चाहिये। मैं अभी पृथ्वी से लौटा हू। वहा से कम्प्यूटर (लैपटाप) लेता आया हू। इसमें सब फीडिंग कर दिया जावेगा। आप लोगों को कोर्इ फाइल आदि रखने की आवश्यकता नहीं होगी। सब काम समय पर होता रहेगा। किसको आना है और किसको जाना है और किसका पाप पुण्य का परसेन्ट है उसमें सब रहेगा। अब आप लोग सेवा निवृत्त किये जाते हैं।
नेतागण – नहीं चित्रगुप्त महाराज। हम सदियों से आपके अण्डर काम करते आ रहे हैं और करते रहेंगे। चित्रगुप्त महाराज की जय हो।
 
ब्रहमा – चित्रगुप्त, वायदा करो अब कभी छुटटी पर नहीं जाओगे।
चित्रगुप्त – और मेरे परिवार वालों का क्या होगा ?
ब्रहमा – तुम्हारी कलम छिनी है, दिमाग नहीं। कलम को पकड़ना एक बात और सम्हालना दूसरी बात।

 

अंबरीष सक्सेना
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