चित्रगुप्त वंशियों की उत्पतित
पुराणों के वचन -(क) यम संहिता
धर्मराज ने जिन्हें पापियों को दण्ड देने का अधिकार मिला है, श्री ब्रह्राा जी की सेवा में जाकर निवेदन किया है कि ऐसा भारी काम मुझसे नहीं चल सकता। ब्रह्राा जी ने कहा- ‘अच्छा, मैं तुम्हारी सहायता करुगा’ धर्मराज को विदा करके ब्रह्राा जी ध्यान में लग गये। देवताओं के हजार वर्ष तक तप करने पर उन्होंने आख खोली, तो क्या देखा कि पुरुष श्यामवर्ण, कमल नयन, सुराहीदार गर्दन वाला जिसका मुख पूनों के चाद की तरह चमकता था, हाथ में कलम दवात और पाटी लिये आगे खड़े हैं। ब्रह्राा जी ने उनसे कहा कि ‘तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए और काया में सिथत थे, इसी से तुम्हारा नाम कायस्थ रखा गया और यह चित्र वाक से हमने गुप्त रक्खा था, इसलिये पंडित तुम्हें चित्रगुप्त कहेंगे। फिर चित्रगुप्त कोटिनगर में जाकर देवी की आराधना में लगे और परमेश्वरी का उन्होंने व्रत किया और स्तुति की। उन्होंने प्रस™ा होकर तीन वर दिये कि परोपकार हो और अपने अधिकार पर सिथर रहो और चिरायु हो।
”एक समय द्विजों में श्रेष्ठ देवशर्मा ने सन्तान के लिए श्री ब्रáा जी की आराधना की। ब्रáा के प्रस™ा होने पर उनके यहाँ इरावती नाम की कन्या उत्पन्न हुर्इ। धम्र्मशर्मा ने उस का चित्रगुप्त जी के साथ विवाह कर दिया, और चित्रगुप्त जी से उससे आठ पुत्र हुए (ƒ) चारु („) सुचारु (…) चित्र (†) मतिमान (‡) हिमवान (‘) चित्रचारू (‰) अरुण (Š) जितेनिद्रय दूसरी मनु की कन्या दक्षिणा, जो चित्रगुप्त के साथ ब्याही गर्इ, उससे यह चार पुत्र हुए। (‹) भानु (ƒ0) विभानु (ƒƒ) विश्वभानु और (ƒ„) वीर्यवान। इन्हीं बारह पुत्रों की सन्तान में ƒ„ जातियाँ हुर्इ:
श्रीवास्तव, बाल्मीकि, सूुरध्वज, अष्ठाना, माथुर, गौड, भटनागर, सक्सेना, कुलश्रेष्ठ, निगम, अम्बष्ठ, करण।
ये बारह पुत्र पृथ्वी पर फैले। चारु मथुरा गये और उनकी सन्तान माथुर कहलार्इ। सुचारु गौड़ देश में गये, इससे उनकी सन्तान गौड़ के नाम प्रसिद्ध हुर्इ चित्रपट नदी पर गये, उनकी संतान भटनागर हुर्इ। भानु श्रीवास नगर में गये और श्रीवास्तव के नाम से उनकी सन्तान प्रसिद्ध हुर्इ। हिमवान ने अम्बा की आराधना की। उनकी संतान का नाम अम्बष्ठ हुआ। मतिमान अपनी स्त्री के साथ गये, इसलिए सक्सेना कहलाये। विभानु-सुरसेन के पास गये, उनकी संतान सूरध्वज कहलाये। इसी प्रकार और पुत्र भी अलग हो गये और इनकी जातियां भी भिन्न हो गर्इ। फिर चित्रगुप्त जी धर्मराज के पास उपसिथत हुए।
(ख) पù पुराण, सुषिट खण्ड:
”सृषिट के आदि में भले-बुरे कामों का निर्णय करने के लिए ब्रáा ने क्षण भर घ्यान किया। उनकी सर्व काया में से एक दिव्य पुरुष उत्प™ा हुआ। उनका नाम चित्रगुप्त हुआ। वह धर्मराज के पास भले बुरे कामों के लिखने पर नियुक्त हुआ और बड़ा ज्ञानी, देवताओं का अग्रगण्य और यज्ञ में भोजन पाने वाला हुआ। इस कारण द्विज उसे भोजन की आहुति देते हैं। ब्रáा की काया से उसकी उत्पत्ति हुर्इ उससे जाति कायस्थ कहलार्इ उसकी सन्तान में अनेक गोत्र के कायस्थ पृथ्वी पर हैं।
भविष्य पुराण:
श्री ब्रáा जी बोले की ”तुम हमारी काया से उत्प™ा हुए इसलिए तुम्हारा नाम ‘कायस्थ हुआ। पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से प्रसिद्ध हो। भले बुरे की पहचान के लिए, हे पुत्र, तुम हमारी आज्ञा से सदा धर्मराज के पुर में सिथत रहो। क्षत्रिय वर्ण के लिए जो उचित है, उसे पालन करते हुए पृथ्वी पर सन्तान उत्प™ा करो।
गरुण पुराण
श्री कृष्ण जी बोले कि ”हे गरुड़, सुनो, मैं कहता हूं। धर्मराज का नगर अति सुन्दर है। वहां नारद आदि जा सकते हैं और वह बड़े पुण्य से मिलता है। यमकोण और नैऋत्य कोण के बीच में जो वैवस्वत का नगर है, उसी में चित्रगुप्त का एक सुन्दर घर बना हुआ है, और पचीस योजन उसका विस्तार है। वह घर बहुत ही सुन्दर है। उसकी दीवारें लोहे की हैं और उनमें सौ द्वार हैं ध्वज पताका लगी हुर्इ है। और वहां कायस्थ पाप-पुण्य देखते हैं
स्मृतियों के बचन-विष्णु-विष्णु धर्मसूत्र
सरकारी दस्तावेज वह है जिसे राजा के आगे उसका नियम किया हुआ कायस्थ बनाये और उस पर उसके अधिकारी के हस्ताक्षर हों।
वृहत्पराशर स्मृति
‘दंड देने के लिए राजा ऐसे लोगों को नियत करे जो धर्म जानने वाले हों और काम में चतुरु हों। लेखक कायस्थ हो जो लिपि विधा की उ™ाति करने वाले हैं।
याज्ञवल्क्य स्मृति
”राजा को चाहिए कि विशेष करके कायस्थों के द्वारा पीडि़त प्रजा की रक्षा करें।”
नारद स्मृति
”राजा, स्वपुरुष, सभासद, शास्त्र, गणक लेखक, सवर्ण, अगि्र, जल यह आठ अंग राज्य शासन के हैं।
बृहस्पति स्मृति
”राजा, अधिकारी, सभासद, स्मृत गणक लेखक स्वर्ण, अगि्र, जल और सिपाही, ये देश अंगराज का साधन करते हैं। जिस राज सभा में राजा राज का प्रबन्ध करने को बैठे, वहाँ इन दस अंगों के भिन्न-भिन्न काम होते हैं, अधिकारी राजा को अभियोग सुनाने वाला, राजा दण्ड देने वाला, सभासद कार्य की परीक्षा करने वाले स्मृति से यह निर्णय होता है कि किसकी जय हुर्इ और किसे दण्ड़ देना चाहिए, सोना अगि्र शपथ के लिए, जल प्यास, बुझाने के लिए, गणक हिसाब करने के लिए, लेखक न्याय लिखने के लिए, सिपाही, सभासद, प्रतिवादी और गवाहों को बुलाने के लिए गणक हिसाब के लिए और मुद्दर्इ मुदाले को अलग रखकर रक्षा करने के लिए इन अंगों में राजा सिर है, अधिकार मुँह हैं, सभासद भुजा है, धर्म-शास्त्र हाथ हैं, गणक और लेखक दोनों कंधा हैं, सोना और अगि्र आँखे हैं और जल âदय है और सिपाही पाँव हैं। शब्द-विधान-तत्वज्ञ, गणना में चतुर, बहुत प्रकार की लिपियाँ जानने वालों को राजा गणक और लेखक नियत करें। सभा में पूर्वमुख राजा, उत्तरमुख सभासद, पशिचम मुख गणक और दक्षिण मुख लेखक बैठे।
व्यास स्मृति
राजा उसे गणक बनावे जो श्रुति और अध्ययन सम्प™ा और उसे लेखक नियत करे जो लिखने के काम में निपुण और शब्दों के लक्षणों को भलि-भाँति जानता हो।
वीर मित्रोदय
”श्रुत और अध्ययन सम्पन्न होने के कारण गणक द्विज है। उसी का साथी लेखक भी है।
मिताक्षरा
”श्रुत शब्द से मीमाँसा और व्याकरण आदि का सुनना और अध्ययन से वेद का पढ़ना समझना चाहिए।
अपरार्क
”कायस्थ कर के अधिकारी अर्थात तहसीलदार होते हैं।
शुक्र नीति
कोतवाल चौधरी, तहसीलदार, लेखक कर लेने वाला बरकंदाज, ये छ: हर गाँव में नियत होने चाहिए। लेखक, गणित में निपुण दस भाषाओं का जानने वाला और साफ लिखने वाला होना चाहिए, न मिले तो क्षत्रिय, वह भी न मिले तो वैश्य होना चाहिए। पर शुद्र गुणवान होने पर भी कभी नहीं होना चाहिए। तहसीलदार और कोतवाल, क्षत्रिय चौधरी ब्राáण, लेखक कायस्थ कर देने वाला वैश्य और बरकंदाज शूद्र होना चाहिए।
कुछ ऐतिहासिक बातें-शिला लेख
(ƒ) जो देहली के एक पत्थर के खम्भे पर लिखा है जिसे अब फीरोजशाह लाट कहते हैं : इस लेख में तिथि बैसाख सुदी ƒ‡ सम्बत ƒ„„Œ पर लिखी है (ƒ‹” र्इ.) और उसमें संस्कृत में लिखा है कि इसे शाकम्बरी देश के राजा विशालदेव के दीवान, माधव के पुत्र श्रीपती गौड़ कायस्थ ने लिखा।
(„) जो सहसराम के समीप एक पहाड़ी पर मिला है:- इस लेख में सम्बत ƒ„ƒ‹ लिखा है और संस्कृत में लिखा है कि इसे कन्नौज के राजा के मंत्री बिहार प्रान्त के कुसुम हरि कायस्थ के पुत्र यज्ञघर और विधाघर ने लिखा।
(…) जो फरवरी ƒ‹’‰ र्इ. में बुलन्द शहर कलक्टर मि. वेब्सटर ने बंगाल की एशियाटिक सोसार्इटी को भेजा था और जो उनके लिखने के अनुसार मानपुर परगना के पुराने किले में मिला था। इस लेख में तिथि सम्वत ƒ„…… लिखी है कि गोदवां गाँव के अनंग ने एक ब्राáण कुल के वत्स को दान दिया था। उसमें संस्कृत में यह भी लिखा है कि उसे बेचन के पौत्र गदोगक नाम के एक माथुर कायस्थ और श्रीधर के पुत्र दुपिस्तुर नाम के एक नागर कायस्थ ने लिखा।
ऐतिहासिक ग्रन्थों से उदधृत वाक्य
(ƒ) संबत ƒ„†Œ (ƒƒ’Š र्इ.) में उदय करण नाम के एक श्रीवास्तव दूसरे कायस्थ अयोघ्या के महाराज पृथ्वीराज की सभा में उमीदवार हो कर गये और वहां उन्होंने बड़ी चतुरता वीरता दिखलार्इ और एक सेना के साथ मेव जाति को दबाने के लिए फफंूद भेजे गये इसके पीछे सम्वत ƒ„†„ में पचास हजार की जागीर की सनद और चौधरी की उपाधि पार्इ।
(„) क™ाौज के राजा जयचन्द के सहायक त्रिभोज नाम के एक श्रीवास्वत दूसरे कायस्थ, उन्होंने हाड़ाहा जिला-उ™ााव का इलाका जीता था और ‰‡ गाँव बसाये थे।
(…) सम्वत ƒ„†Š (ƒ‹† र्इ.) में उज्जैन के पतन की पीछे राय हीरामल नाम के एक श्रीवास्तव दूसरे कायस्थ मुंगेपाटन की सेना के नाजिम के और राय अहीनवेस के साथ अवध में आये थे जिसने अल्लाउ’ीन गौरी की सेना के साथ अवध पर चढ़ार्इ भी की नसीराबाद, परगना जायस के कायस्थ इन्हीं की सन्तान से हैं।
(†) सम्वत ƒ…‡Œ में ठाकुर रामनाथ नाम के एक श्रीवास्तव दूसरे कायस्थ प्रसिद्ध वैश्य राजा त्रिलोक चन्द के मन्त्री थे और इसके पीछे अस्सी पीढ़ी तक यह पद उसी घराने में रहा। राय बरेली में ठाकुर नामराय के ƒ‰Š गाँव इनामी पार्इ थी। ओरगंजेब के दीवान ठाकुर विजय सिंह इसी घराने के थे। इस घराने के लोग भी वैश रर्इसों को भैया, और वैश इस घराने वालों को ठाकुर लिखा करते थे।
(‡) वीसवाँ के श्रीवास्तव कायस्थों को सम्वत ƒ„ŒŒ (सन ƒƒ‡Œ र्इ.) में 20 गांवों को आज्ञा पत्र दिल्ली राज्य से मिला था। पीछे किसी समय पर भूरों ने उन्हें निकाल दिया पर बीस वर्ष पीछे अकबर के राज्य में वे फिर अधिकारी हुए और उसी घराने के मुखिया को कानूनगोर्इ का पद मिला।
(‘) संवत ƒ†… Œ (ƒ…‰’ र्इŒ) में अमोढ़ा के पांडे श्रीवास्तव इसी कायस्थ राय जगत सिंह अवध सुल्तानपुर के सूबेदार थे। इसी ने कायस्थ नवाब गंज के डोम राजा को हराया था और इसके बदले अमोढ़ा के आधार पर राज्य पाया।
(‰) कायस्थों ने सदरपुर जिला सीतापुर के भूरों का निकालकर ƒ‡Œ वर्ष तक उस देश पर कब्जा रक्खा। फिर राजपूतों ने उन्हें हराया। कायस्थों ने फिर चढ़ार्इ करके Љƒ फसली (ƒ‡‰„ र्इŒ) में फिर से पाया।
(Š) सन ƒ‰Š† र्इŒ नवाब आसफुददौला के मंत्री महाराजा टिकयत राय थे, जिन्होंने परगना दरियाबाद में टिकयत नगर और शहर लखनऊ और जिला लखनऊ और कलकत्ता आदि में भी इसी के नाम के गाव बसाये थे और इलाहाबाद आदि में कर्इ धर्मशाला, घाट, पुल, कुऐं बनवाये थे।
(‹) अवध के सूबेदार नवाब असदात अलीखां मंत्री चित्रगुप्तवंशी कायस्थ राजा नवल राय ने बड़ी वीरता से रुहेला को फैजाबाद से निकाल दिया था।
(ƒŒ) पुराने लखनऊ लक्ष्मण टीले के पास रहने वाले ब्राह्राण और कायस्थ थे।