‘’ चन्द्रसेन कायस्थ प्रभु का इतिहास बड़े महत्व का एवं रहस्य जनक है। ‘शब्द कल्प-द्रुम’ के छठे खंड के दूसरे कांड में कथन है, जिसके लेखक सर राजा राधा कान्त देव बहादुर, शोभा बाजार राजा (कलकत्ता) है –
चित्रगुप्त वंशे कायस्थोपाधि धारिणा।
सर्वे ते क्षत्रिया लोके मताश्च सुनिभि: सदा।।
सूर्यवंश्या तथा भूपा: सोमवंश्या भुवि।
क्षमवर्णेस्थि: सर्वे एवं ते चैत्रगोप्तिका:।।
चन्द्रसेनस्य वंश्या ये कायस्था जगती तले।
क्षत्रिय: क्षत्रिया जाता क्षत्रिया: शास्त्रसम्मता:।।
एषा कायस्थ संज्ञत्वां वर्णख्या शास्त्रसम्मता।
द्वि वंश्यानां न चान्येषा कायस्थानां हि भूतले।।
आधुनिक काल में श्री परशु राम जी ने क्षत्रियों को धरती से विहीन करने की प्रतिज्ञा की। फलत: अयोध्या के राजा चन्द्रसेन चित्रगुप्त वंशज क्षत्री का बध किया। चन्द्रसेन की पत्नी के गर्भ में बालक था। उसने भागकर पूना के निकट वल्लभ ऋषि के आश्रम में आश्रय लिया। परशु राम जी ने यह जानकर वल्लभ ऋषि के पास जाकर चन्द्रसेन की रानी को वध करने के लिये मांगा। वल्लभ ऋषि रानी को इस शर्त पर देने को तैयार हो गये कि गर्भ के बालक का बध न किया जाये। परशुराम जी असमंजस में पड़ गये और रानी का बध नहीं किया और कहा ‘इसके जो बालक होगा वह कायस्थ कहलायेगा और उसका व्यवसाय लेखक एवं गणित का होगा। वह सैनिक कार्यों में भाग न लेगा।’ तथास्तु । बालक का नाम सोम राजा हुआ, इनकी संतान बड़ी प्रभावशाली हुई एवं राज्यों में प्रमुख पदों पर नियुक्त हुए। उस समय शूद्र ने उनको प्रभु (मालिक राजा) के नाम से सम्बोधित करने लगे। इस प्रकार यह वर्ण चन्द्रसेनी कायस्थ प्रभु के नाम से प्रसिद्ध है।
सोमराज तथा उनकी पत्नी (कायस्थ चित्रगुप्त की पुत्री) की सन्तति से चन्द्रसेनीय कायस्थों की वंशावली प्रारम्भ हुयी। यधपि परशुराम ने उनके पूर्वजों का वध किया था, चन्द्रसेनीय कायस्थ परिवार आज भी रेणुका को कुलदेवी के रुप में पूजते हैं।
काश्मीर में चिनाब की घाटी से प्रारम्भ होकर वे धीरे-धीरे महाराष्ट्र, दक्षिणी समुद्रतटीय प्रदेश, कोंकण, कोलाबा, बड़ौदा आदि स्थानों पर बस गये। चिनाव का संस्कृत में अर्थ है चन्द्र। अत: वे चन्द्रश्रेणीय और कालान्तर में चन्द्रसेनीय कहलाने लगे। लगभग डेढ़ शतक पूर्व श्रंगेरी मठ के शंकराचार्य द्वारा दिये गये निर्णय के आधार पर चन्द्रसेनीय कायस्थ विशुद्ध रुप ये क्षत्रिय हैं। उनको वेदाध्ययन तथा समस्त वैदिक कार्य करने का पूर्ण अधिकार रहा है। अनुमान है कि कोंकाण के शिलाहार राजाओं ने उनको ‘प्रभु’ की उपाधि से विभूषित किया था। प्रभु का दूसरा अर्थ था उच्च पदस्थ शासकीय अधिकारी।
महाराजा शिवाजी के पेशावरो के शासन काल में वे उच्च पदों पर आसीन थे और प्रमुख व्यक्तियों में गिने जाते थे। उनकी देशभक्ति एवं स्वामि भक्ति से प्रभावित होकर शिवाजी ने अनेकों चन्द्रसेनियों को अपने सुदूरवर्ती दुर्गों के प्रशासक तथा अन्य विश्वसनीय प्रमुख पदों पर नियुक्त किया था। इनमें बाजी नरस प्रभु, बहिरजी नायक, जी प्रभु देशपाण्डे, मुराबजी देशपाण्डे बालाजी आवाजी चिटनिस की देश सेवा एवं स्वामिभक्ति अवर्णनीय है।
शिक्षित सुसभ्य तथा मांसाहारी होने के कारण वे ब्रिटिश शासनकाल में भी विदेशियों तथा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों में भली प्रकार से घुलमिल गये और अपना पूर्ववर्ती स्थान बनाने में सफल रहे। इस काल के प्रमुख व्यक्ति सर गोविन्द बलवन्त प्रधान (बंबर्इ प्रान्त के वित्तमंत्री) तथा सर महादेव भास्कर चौबल (कार्यकारिणी समिति के सदस्य एवं बम्बर्इ हार्इकोर्ट के जज) थे।
अपनी आकर्षक मुख मुद्रा तथा सौन्दर्य के कारण स्त्रियाँ प्राचीन काल में सिने पटल पर पूर्णतया छार्इ रहीं। इनमें प्रमुख हैं शोभना समर्थ, स्नेह-प्रभा प्रधान, नलिनी जयवन्त, सुमति गुप्ते, मीरा जोगलेकर, कुसुम देशपाण्डे, सन्ध्या, नूतन, तनुजा, काजोल तथा रेखा, कुलकर्णी। तदुपरान्त अन्य क्षेत्रों से भी स्त्रियों के सिने प्रवेश के फलस्वरुप चन्द्रसेनीय महिलाओं ने अन्य क्षेत्रों की ओर ध्यान देना आरम्भ किया। आज वे सरकारी अथवा निजी कार्यालयों, विश्वविधालयों, महाविधालयों आदि में कार्य रत हैं। अन्य क्षेत्रों में कुसुमवती देशपाण्डे (सहित) तथा मृणाल मोरे (सामाजिक) को भुलाया नहीं जा सकता है।
पुरुष वर्ग में अनेको व्यक्तियों ने उच्च पदों पर रहकर तथा अन्य क्षेत्रों में प्रंशसनीय कार्य किया है। इनमें सर गोविन्द बी0 प्रधान (बम्बर्इ के गवर्नर की कार्यकारिणी समिति के सदस्य), राम गणेश गडकरी (मराठी साहित्य तथा स्टेज कला के लिये प्रख्यात), आचार्य एस0 आर0 मिसे (गोरवले एजूकेशन सोसाइटी के संस्थापक), के0 बी0 बैधा (भारतीय डाक तार विभाग में प्रमुख), आर0 एस0 हाजरनवीस (सुप्रसिद्ध कानूनविद, संसद सदस्य तथा केन्द्र में उपमंत्री रहे), बी0टी0 रणदिवे, बी0 बी0 कार्णिक, दत्ता तामहेन, कम्यूनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रुप में बाल ठाकरे (शिव सेना प्रमुख) तथा सी0 डी0 देशमुख केन्द्र में वित्त मंत्री, विश्वविधालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष, तथा दिल्ली विश्वविधालय के उपकुलपति थे। एस0 जी0 प्रधान (पुलिस कमिश्नर, विशिष्ट सेवाओं के लिये पुलिस पदक से सम्मानित) सुभाष गुप्ते (प्रमुख क्रिकेट खिलाड़ी), पुरुषोत्तम आर0 राजे (सुप्रसिद्ध उधोगपति), सुराब (सुरेन्द्र), गोविन्द राव टिपनिस (प्रख्यात समाजसेवक) तथा वन्त गोविन्द देशमुख (महाराष्ट्र राज्य प्रकाशन विभाग में प्रमुख अधिकारी) की सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता।
चन्द्र सेनी कायस्थ के उपवर्गों के नाम इस प्रकार हैं – अधिकारी, चित्रे, डोंडे, गुप्ते, जयवन्त, प्रधान, राजे, रनदीवे, वैधा। राज्य के पदो के अनुकूल उनके नाम इस प्रकार भी हैं – चितनवीस, कोतवाल, परसनवीस, पटनीस, टिपनीस, फरनीस, देशमुख, देशपांडे, दफतरदार, डोंगरे, कार्णिक, दीवान, कुलकरनी, थैकरे, मेढेकर इतियादि हैं।
सन 1926 में आल इंडिया कायस्थ कान्फ्रेन्स कलकत्ता के 33वें अधिवेशन के अध्यक्ष सर शंकर राव माघी राय चितनवीस हुये थे। 19 मर्इ सन 1949 र्इ0 में बम्बर्इ के प्रभु कायस्थों ने लेखक का (जो उस समय प्रधान मंत्री आ0 र्इ0 कायस्थ कान्फ्रेन्स के पद पर था। ताजमहल होटल में स्वागत किया एवं बम्बर्इ प्रान्तीय कायस्थ सभा स्थापित की जिसके सदस्य उत्तर भारत तथा कायस्थ प्रभु निर्वाचित किये गये। सन 1951 र्इ0 में 53 वें अधिवेशन कायस्थ कान्फ्रेन्स बम्बर्इ के स्वागताध्यक्ष प्रिंसिपल श्री टी0 कुलकर्णी थे। सन 1971 र्इ0 के 58 वें अधिवेशन की स्वागत समिति के उच्च पदों पद सुशोभित है।