उठ चित्रांश उठ मैं बोल रहा हू चित्रगुप्त
हाँ चित्रगुप्त
अपने ही खानदान बीच हो चुका हूँ
लुप्त।
हमारे जमाने में हमें ब्रहमा ने बताया था
जिसके जितने ज्यादा बेटे होंगे
वो उतना ही बड़ा इन्सान होगा
सुख सम्पन्न होगा, धनवान होगा।
पढ़ा-लिखा ज्ञान-वान होगा।
यही सोचकर, सही सच मानकर
चित्रगुप्त के हुये बारह बेटे
पर अम्बरीश
हम निकले किस्मत के हेटे
सोच-सोच कर होता है ‘सन्ताप’
क्यों हुऐ हम बारह बेटों के बाप
इनके आपस में ही नहीं हैं अनुराग
सोचो वह कितना बड़ा है दुर्भाग्य
जो अपनों का नहीं रहा वो किसी का
क्या होगा जनाब।
कवि होने के नाते तुम दे सकते हो जवाब।
आज हिन्दुस्तान में गुर्जर एक हैं, मीणा एक
श्रत्रिया एक, यादव एक
अल्प संख्यक एक
इस एकता की दौड़ में
कायस्थ कहा है।
ज्ञान कहा है, सम्मान कहां है।
बहुत से कायस्थों का यही पता नहीं
उनका स्थान कहा है।
चित्रगुप्त कहा है।
आज भारत में सार्इं बाबा हैं
करोड़ो में खेल रहे हैं
हम अपने आपको ही गर्त में
ढकेल रहे हैं।
चित्रगुप्त के वंशज हैं, पर मानता नहीं।
अपने पूर्वज की पूजा को प्रधानता नहीं।
राम भी पैदा हुए, कृष्ण भी पैदा हुए
भगवान हो गये
हम सकल भारत के लिऐ तो क्या
अपने ही वंश के लिये अंजान हो गये
तभी तो कुछ लोगों को छोड़कर
हमारे वंशज ही मंदिर में नहीं आते
और प्रथा के नाम पर धेला तक नहीं चढ़ाते।
हम अज्ञानी तो हो ही गये हैं
निर्धन भी हो रहे हैं
हमारे वंशज हो रहें हैं
खाने-पीने में मशगूल
और अपने आपको क्या,
अपने बाप को भी गये हैं भूल
ये है मेरे मन की पीड़ा
तुम कवि हो अपने वंशज को उठाने का
उठाओ बीड़ा।
अगर ऐसा कर पाओगे
तो मैं भी चमत्कार दिखलाऊंगा
मेरी पूजा करने वालों को कम से कम
करोड़पति बनाऊंगा।
अम्बरीश सक्सेना
‘ संतुष्टि’
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