दक्षिण के करनीगर कायस्थ

‘’ दक्षिण के लगभग 5 लाख करनीगर कायस्थ अधिकतर ग्राम करनम्स में अध्यापक की भाति नौकरी कर रहे हैं और कांचीपुरम के चारों ओर मद्रास नगर से 45 मील दूर 4-5 जनपदों में फैले हैं। वहां भगवान चित्रगुप्त जो केवल समस्त करनीगरों के ही नहीं बल्कि समस्त कायस्थों के प्रमुख देवता हैं।

परम्परानुसार करन की देवी-भगवान चित्रगुप्त की 3 में एक पत्नी जिन्होंने अपनी कठिन सफल तपस्या के बल अपने 8 पुत्रों की बीरासेगरयागा की 8 पुत्रियों से विवाह कर दिया। प्रत्येक पुत्री के 8 पुत्र अर्थात कुल 64 पुत्र हुये। इन 64 पुत्रों ने शंकरमाजा के परिवार की पुत्रियों से शादी कर, प्रत्येक ने अपने परिवार का पृथक मुखिया बनाया। प्रत्येक का पृथक गोत्र होने से 64 गोत्र बने। ये 64 पुत्र अपने गुरु ज्ञान ऋषि के निर्देश पर वे चेन्नियां चोल के अनुयायी बन पलार नदी के किनारे ग्राम लेखाधिकारी बन गये। इस प्रकार वे अपने उत्तर के भाइयों से अलग हो गये। पुरातन काल में ग्रामों के राजा माने जाने लगे।

चेन्नया चोल के समय में भुलाबार मण्डयम वामदेव गोत्रीय ने कांजीवरम और श्री चित्रगुप्त का मंदिर बनवाया था, जो कैलासन्थेर तथा श्री बैकुण्ठ पेरुमल के मंदिरों के मध्य एवं कामाक्षी देवी मंदिर के बगल में था। निसन्देह नटराज जी के मंदिर चिदम्बरम में चित्रगुप्त जी की प्रतिमा की स्थापना 1913 में अवश्य हो चुकी है। इस चित्रगुप्त मंदिर ने सम्पन्नता देखी है। समय के साथ भक्तों, अनुयायियों के प्रभाव के नष्ट होने व हैदर अली के आक्रमण के कारण उन्हें मंदिर का त्याग करना पड़ा। प्रतिमा मंदिर के पीछे आंगन में जमीन में दब गर्इ जो 1911 में खोद कर निकाली गयी। मंदिर के खण्डहर मात्र अवशेष थे। महान श्रम तथा धन व्यय करने के पश्चात 1918 में वर्तमान रुप प्रदान किया जा सका। अप्रैल व मर्इ के मध्य चित्रा नक्षत्र में करन की देवी के चित्रगुप्त जी के साथ विवाह के उत्सव के आयोजन में कान्जीवरम के 4 मुख्य मार्गो से जुलूस निकाला जाता है।

दक्षिण भारत के कायस्थ करनीगर बुद्धि-प्रखर होते हुये भी अपने उत्तर के भाइयों से साधन एवं सम्पन्नता में बहुत पीछे हैं। इसी प्रकार करनीगरों में रामलिंगा स्वामीगल एवं अन्य भी दक्षिण में महान हुये हैं।