गणेश प्रसाद
भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा.गणेश प्रसाद (Ganesh Prasad) का जन्म 15 नवम्बर 1876 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया नामक जनपद में हुआ था | इनका संबध धनी परिवार से था | इनके द्वारा हाई स्कूल की शिक्षा बलिया से पूर्ण की गयी | माध्यमिक शिक्षा के बाद इनका विवाह लोदीपुरी जिला सादाबाद के मुंशी क्षेमनलाल की सुपुत्री से हुआ था | इन्होने वही भारत देश में गणितीय अनुसन्धान की परम्परा स्थापित की | इन्होने म्योर सेंट्रल कॉलेज कलकत्ता से एम.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की |
गणेश प्रसाद (Ganesh Prasad) इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में डी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति थे | आगरा विश्वविद्यालय का निर्माण इन्ही के द्वारा कराया गया था एवं आजीवन सीनेट के सदस्य रहे | वे सभी कमेटियो में पूर्ण तैयारी के साथ उपस्थित होते थे | सन 1889 में डा.गणेश प्रसाद इंग्लैंड चले गये जहां वे पांच वर्ष व्यतीत किये तथा वर्षो तक सेंट्रल हिन्दू कॉलेज बनारस के प्रधानाध्यापक रहे और अंत में कलकत्ता की उच्च शिक्षा की हार्दिन्स के पद पर इनकी नियुक्ति की गयी |
डा.गणेश प्रसाद (Ganesh Prasad) का प्रथम अनुसन्धान लेख दैधर्य फेलो और गीली हरात्मक का ‘मेसेंजर” आप मेथेमेटिक्स नामक प्रकाशित हुआ | इन्होने गणित के अनेक विद्वानों की त्रुटियों को पहचान करके उनका सुधार किया | सन 1932 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के और गणित , भौतिक विज्ञान के सभापति के रूप में इनकी नियुक्ति की गयी | डा.प्रसाद ने उच्चकोटि के 11 भौतिक ,गणित ग्रंथो की रचना की है जिनमे से कुछ विदेशो में भी पाठ्य-पुस्तक के रूप में चल रहे है |
प्रसाद जी को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शिक्षको एवं छात्रों में काफी प्रसिधी प्राप्त थी | कैम्ब्रिज से डिग्री लेकर गणेश प्रसाद जर्मनी के गार्टजन नगर के विद्यापीठ में जाकर हिल्वर्ट और जेमर फील्ड जैसे गणिताचार्यो के पास गणित का परिशीलन करने लगे | उनका यश सम्पूर्ण विश्व में विस्तृत हो गया | गणेश प्रसाद समय को सबसे अधिक बलवान मानते थे अर्थात वे समय के पाबन्द थे | वे बरसात के दिनों में दो घोड़ो वाली गाडी में कॉलेज आते थे और यदि गाडी वाला समय पर नही आया तो वे उसका इन्तजार न करके पैदल ही चल देते थे |
9 मार्च 1935 को 11 बजे आगरा विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी कौंसिल की बैठक होनी थी | डा.प्रसाद 8 मार्च को रात्री को चलकर 9 मार्च को प्रात: आगरा पहुचे | छात्रावास से भोजन आदि ग्रहण करने के पश्चात 11 बजकर 45 मिनट तक वे विश्वविद्यालय में प्रवेश किये | वहा उन्होंने सभा में अपने विचारो से सभी शिक्षक तथा छात्रों को अवगत कराया | विज्ञान के छात्रों के पवेश एवं परीक्षको की नियुक्ति का कार्य पूर्ण किया | इसी दिन शाम 7 बजकर 30 मिनट पर आगरा के थोमसन चिकित्सालय (वर्तमान में सरोजनी नायडू चिकित्सालय) में उनका देहान्त हो गया | आज ये हमारे बीच भले ही उपस्थित नही है परन्तु गणित के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गये महान कार्यो को भारत ही नही पूरा विश्व सदा स्मरण करता रहेगा |